
नई दिल्ली, 3 दिसंबर . आंध्रप्रदेश में श्रीकालहस्ती मंदिर को दक्षिण का कैलाश कहा जाता है. लेकिन, भगवान शिव का एक अन्य मंदिर भी है, जिसे प्राचीन काल से ही ‘दक्षिण के कैलाश’ की उपाधि मिली हुई है.
माना जाता है कि यहां दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह मंदिर अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन आक्रमणकारियों की वजह से मंदिर जर्जर हालत में है.
तेलंगाना के आलमपुर में कुरनूल के निकट श्री बाला ब्रह्मेश्वर स्वामी मंदिर है. यह मंदिर भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित है. यह नवब्रह्म मंदिर में से एक माना जाता है, जिसका निर्माण छठी शताब्दी के मध्य चालुक्यों ने कराया था. चालुक्य शासन काल में सबसे ज्यादा हिंदू देवी-देवताओं के मंदिरों का निर्माण हुआ था.
बताया जाता है कि आक्रमणकारियों के हमले के बाद भी आज भी मंदिर सही स्थिति में मौजूद है. हालांकि, मंदिर का कुछ हिस्सा भी प्रभावित हुआ था.
मंदिर का निर्माण पत्थर से किया गया और यही वजह है कि मंदिर आज भी मजबूती से खड़ा है. यहां पुरातत्व विभाग को अधिकांश मूर्तियां अच्छी स्थिति में मिली हैं. मंदिर की दीवारों पर बारीकी से देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की नक्काशी की गई है. नक्काशी इतनी सफाई से की गई है जिसे आज के दौर में मशीन की सहायता से भी नहीं किया जा सकता. मंदिर की छत पर चारों कोनों में अलग-अलग दिशाओं में भगवान नंदी विराजमान हैं. माना जाता है कि नंदी महाराज रक्षक के तौर पर तैनात हैं.
श्री बाला ब्रह्मेश्वर स्वामी मंदिर 18 शक्तिपीठों में से एक है. माना जाता है कि यहां मां सती के दांत गिरे थे और मां शक्ति के रूप में विराजमान हुई. मंदिर में मां को देवी जोगुलम्बा के रूप में पूजा जाता है, जबकि भगवान शिव को बाला ब्रह्मेश्वर स्वामी के रूप में पूजा जाता है.
मंदिर के भीतर पिंडीनुमा शिवलिंग स्थापित है, जिसे स्वयंभू माना गया है. दूर-दूर से भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर में आज भी पूजा-अर्चना जारी है, जबकि बाकी नवब्रह्म मंदिरों में पूजा-पाठ बंद हो चुका है.
बताया जाता है कि मंदिर पर मुस्लिम आक्रमणकारियों ने हमला किया था. लेकिन, मंदिर का कुछ हिस्सा ही प्रभावित कर पाए थे.
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पीएस/एबीएम