
नई दिल्ली, 4 दिसंबर . रंगभेद के खिलाफ वैश्विक संघर्ष का सबसे प्रखर चेहरा और दक्षिण अफ्रीका को नई पहचान देने वाले महान नेता नेल्सन मंडेला को दुनिया शुक्रवार (5 दिसंबर) को याद करेगी. मानवाधिकार और समानता की लड़ाई को नई दिशा देने वाले दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न से सम्मानित मंडेला का निधन 5 दिसंबर 2013 को हुआ था, लेकिन उनकी विरासत आज भी नस्लीय अन्याय के खिलाफ दुनिया की सबसे बुलंद आवाज बनी हुई है.
नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की दमनकारी व्यवस्था के खिलाफ संघर्ष किया. उन्होंने रंगभेद के खिलाफ लड़ने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. इसकी वजह से उन्हें अपने जीवन के 27 साल जेल में बिताने पड़े, लेकिन फिर भी उनकी हिम्मत और उनका जज्बा कोई तोड़ न सका.
27 साल बाद 1990 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने देश में शांति और भाईचारा का रास्ता चुना. इसके बाद 1994 में वह दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने. उनका कार्यकाल केवल शासन तक सीमित नहीं था, बल्कि समाज के अलग-अलग वर्गों के लोगों को एकजुट करने की एक व्यापक पहल थी.
नेल्सन मंडेला का भारत के साथ गहरा जुड़ाव था. वह महात्मा गांधी को अपना प्रेरणास्रोत मानते थे और उन्होंने महात्मा गांधी की राह पर चलते हुए ही अहिंसा का मार्ग चुना था. मंडेला को 1990 में भारत सरकार ने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया था.
उन्होंने अनेक अवसरों पर कहा कि भारत का स्वतंत्रता संग्राम और गांधी की अहिंसा उनके जीवन की दिशा तय करने में निर्णायक रहे. वे गांधी के आदर्श से इतने प्रभावित हुए थे कि उनके राह पर चलने लगे और अहिंसा और एकता का पाठ पढ़ाने लगे. यही कारण है कि उन्हें अफ्रीका का गांधी कहा जाने लगा.
नेल्सन मंडेला सिर्फ एक राजनेता नहीं थे, बल्कि साहस, त्याग और मानवीयता के प्रतीक भी माने जाते थे. उन्होंने सिखाया कि संघर्ष कितना भी कठिन क्यों न हो, न्याय और समानता की राह पर डटे रहना जरूरी है.
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केके/डीएससी