वेटलिफ्टिंग: सैनिकों के बीच ताकत परखने वाला खेल, जिसने ओलंपिक में बनाई खास पहचान

नई दिल्ली, 5 दिसंबर . वेटलिफ्टिंग ताकत, सहनशक्ति और संतुलन का खेल है, जिसमें स्नैच के अलावा, क्लीन एंड जर्क दो मुख्य तकनीकों के रूप में शामिल हैं. इस खेल के लिए आत्मविश्वास और मानसिक दृढ़ता के साथ शरीर की मांसपेशियों को विकसित करना जरूरी है. ओलंपिक में वेटलिफ्टिंग बेहद लोकप्रिय खेल है.

एक दौर था, जब मनुष्य किसी कार्य को अंजाम देने के लिए भार को उठाकर यहां से वहां जाता था, लेकिन बाद में इसे शख्स के बलवान होने से जोड़कर देखा जाने लगा. धीरे-धीरे लोग एक-दूसरे से अधिक वजन उठाकर खुद को ज्यादा बलशाली साबित करने की होड़ में लग गए. यहीं से इस खेल का इजाद भी हुआ.

ग्रीस, चीन, मिस्र और मेसोपोटामिया में योद्धा और सैनिक अपनी ताकत परखने के लिए भारी पत्थर या वस्तुएं उठाते थे, जिसने इस खेल की नींव रखी. धीरे-धीरे अन्य देशों में पहलवान शौक के साथ वेटलिफ्टिंग के खेल में हिस्सा लेने लगे. आलम ये रहा कि 19वीं शताब्दी के अंत तक वेटलिफ्टिंग एक अंतरराष्ट्रीय खेल के रूप में अपनी पहचान बना चुका था.

1896 एथेंस ओलंपिक में इस खेल को शामिल किया गया. हालांकि, यह 1900, 1908 और 1912 के संस्करणों का हिस्सा नहीं रहा. इन तीन संस्करणों को छोड़कर, वेटलिफ्टिंग का खेल प्रत्येक ओलंपिक का हिस्सा रहा है. साल 1935 में भारतीय भारोत्तोलन महासंघ की स्थापना हुई, जिसके बाद भारत ने 1936 बर्लिन ओलंपिक में पहली बार इस इवेंट में हिस्सा लिया.

2000 सिडनी ओलंपिक में इस खेल में महिलाओं ने भी हिस्सा लेना शुरू किया. इसी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने महिलाओं के 54 किलोग्राम भारवर्ग में ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया. इसके बाद मीराबाई चानू ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में 49 किलोग्राम भार वर्ग में देश को सिल्वर मेडल दिलाया.

वेटलिफ्टिंग के खेल में वेटलिफ्टर्स अलग-अलग बॉडीवेट कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा करते हैं. ओलंपिक में इसके दो चरण होते हैं: ‘स्नैच’ और ‘क्लीन एंड जर्क’. वेटलिफ्टर को दोनों कैटेगरी में तीन-तीन मौके दिए जाते हैं, जिसमें उसके सर्वश्रेष्ठ प्रयास को ही जोड़ा जाता है. दोनों कैटेगरी के वजन को जोड़कर विजेता घोषित किया जाता है.

‘स्नैच’ में वेटलिफ्टर बारबेल को उठाते हुए इसे अपने सिर के ऊपर सिंगुलर मोशन में लिफ्ट करता है, जबकि ‘क्लीन एंड जर्क’ में वेटलिफ्टर पहले बारबेल को उठाकर इसे अपनी छाती तक लेकर जाता है. उसे इसी पोजीशन पर कुछ देर रुकना होता है. इसके बाद वह अपनी बाहों और पैरों को फैलाकर बारबेल को सिर के ऊपर लेकर जाता है. इस दौरान उसकी कोहली बिल्कुल सीधी रहनी जरूरी है. बजर बजने तक वेटलिफ्टर को बारबेल सिर से ऊपर रखना होता है.

भारत में सीनियर के साथ युवा और जूनियर स्तर पर वेटलिफ्टिंग तेजी से आगे बढ़ रही है. विश्व स्तर पर भारत के वेटलिफ्टर्स ने अपना नाम रोशन किया है. सीनियर्स के नक्शे कदम पर चलते हुए युवा खिलाड़ी और जूनियर स्तर के एथलीट इसमें शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं, जो भविष्य के लिए अच्छा आधार है. कड़ी ट्रेनिंग, बेहतरीन संसाधन, अच्छी कोचिंग और सपोर्ट के साथ ओलंपिक में भारत को इस खेल में और भी अधिक मेडल मिलने की संभावना है.

आरएसजी/डीकेपी