
नई दिल्ली, 5 दिसंबर . कई लोगों में किडनी सिस्ट की शिकायत होती है. ये पानी से भरे छोटे थैले होते हैं. ज्यादातर मामलों में ये हानिरहित होते हैं, लेकिन दिक्कत तब शुरू होती है जब सिस्ट का आकार बढ़ने लगे, पेट या कमर में दर्द होने लगे, पेशाब में जलन, बार-बार इंफेक्शन हो या ब्लड प्रेशर बढ़ने लगे.
आयुर्वेद के अनुसार किडनी सिस्ट बनने के पीछे शरीर में रुकावटें, कफ का जमा होना और दिनचर्या की गड़बड़ी जैसी वजहें देखी जाती हैं. कई मामलों में शुरुआती स्टेज पर जीवनशैली और कुछ पारंपरिक जड़ी-बूटियों का सहारा लेकर राहत मिल सकती है, हालांकि किसी भी उपाय को अपनाने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है.
किडनी सिस्ट बनने की वजह अक्सर हमारी रोजमर्रा की आदतों में छुपी होती है, जैसे कम पानी पीना, देर रात तक जागना, ज्यादा नमक या मसालेदार भोजन खाना, मीठे पदार्थों की आदत, शरीर में सूजन बढ़ना, कब्ज़ या धीमा पाचन. इन छोटी-छोटी गलतियों का असर धीरे-धीरे किडनी पर पड़ता है.
आयुर्वेद में कुछ पारंपरिक उपाय बताए गए हैं जिनमें गोक्षुर और एलोवेरा जूस का संयोजन, वरुण चूर्ण, गिलोय सत्व, ककड़ी-पुदीना-धनिया से बना पानी, पुनर्नवा और अश्मभेद वाला काढ़ा, रात में भिगोए मुनक्के, हल्का लौकी वॉटर, और रात में लिया गया त्रिफला शामिल है. कई लोग इन उपायों का उपयोग सूजन कम करने, शरीर को हल्का महसूस कराने और पाचन संतुलित रखने के लिए करते हैं.
इसी तरह हल्के योगासन मत्स्यासन, भुजंगासन और मकरासन किडनी क्षेत्र की रक्त-परिसंचरण में मदद कर सकते हैं. कुछ लोग तांबे के बर्तन में पानी भी सुबह पीते हैं, जो पारंपरिक तौर पर पाचन और सफाई में सहायक माना जाता है.
किडनी सिस्ट वाले लोगों को भारी, अत्यधिक नमकीन या प्रोसेस्ड चीजें कम करनी चाहिए. आयुर्वेदिक दृष्टि से हल्के और पानी वाले खाद्य पदार्थ जैसे लौकी, ककड़ी, नारियल पानी, गाजर और हल्की दालें बेहतर मानी जाती हैं. साथ ही 7–8 गिलास पानी, समय पर सोना, नमक की मात्रा सीमित रखना, रोज 30 मिनट टहलना और प्रोटीन का सेवन अपनी क्षमता के अनुसार रखना फायदेमंद होता है.
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पीआईएम/वीसी