
नई दिल्ली, 3 दिसंबर . जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ कथित तौर पर हुए बुरे बर्ताव को लेकर बढ़ता गुस्सा, पाकिस्तान के लिए आखिरी तिनका साबित हो सकता है जो पहले से ही कई विद्रोहों और घटते हुए खजाने का सामना कर रहा है.
अफगानिस्तान की सीमा से लगे खैबर पख्तूनख्वा में पहले से ही जनजातीय अशांति और कथित आतंकी हमले हो रहे हैं. पाकिस्तान के कब्जे वाले पीओके और बलूचिस्तान जैसे आसपास के इलाकों में लोग बुनियादी सुविधाओं की मांग कर रहे हैं, दमन का विरोध कर रहे हैं, और यहां तक कि लोग अलग होने की भी मांग कर रहे हैं.
इसकी परेशानियों को और बढ़ाते हुए, जिस मिलिशिया को इस्लामाबाद ने अफगानिस्तान में पुरानी सोवियत सेनाओं से लड़ने के लिए बनाया था, उसने काबुल पर कब्जा कर लिया है और किसी भी धमकी के आगे झुकने से इनकार कर दिया है, और हर पाकिस्तानी हमले का जवाब अपने हमले से दे रहा है.
पाकिस्तान-अफगान सीमा पर उतार-चढ़ाव बना हुआ है, लगभग दो महीने से व्यापार बंद है.
इस बीच, देश के वित्त मंत्रालय के अनुसार, जून 2025 तक इस्लामाबाद का कुल सरकारी कर्ज 287 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच गया, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी है.
कर्ज से जीडीपी अनुपात लगभग 70 प्रतिशत तक बढ़ गया था, जहां घरेलू कर्ज में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई, वहीं बाहरी कर्ज में छह फीसदी की बढ़ोतरी हुई. ऑफिशियल फाइनेंशियल डेटा ने पाकिस्तान पर बढ़ते कर्ज के बोझ को दिखाया है. ज्यादा बाहरी कर्ज, कम फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व और कमजोर ग्रोथ ने मिलकर इस्लामाबाद के लिए भुगतान संतुलन और राजकोषीय दबाव को गंभीर बना दिया है.
पाकिस्तान एक बहुआयामी बेलआउट रणनीति भी अपना रहा है, जिसमें चीन, सऊदी अरब और यूएई से द्विपक्षीय आश्वासन, शॉर्ट-टर्म डिसबर्समेंट और ऋण पुनर्गठन बातचीत के साथ आईएमएफ प्रोग्राम शामिल है.
पाकिस्तान के फेडरल एडमिनिस्ट्रेशन और इमरान खान के परिवार के बीच विवाद जेल में पाबंदी की शिकायतों और पब्लिक आरोपों से बढ़कर बड़े पैमाने पर विरोध और संभावित राजनीतिक टकराव में बदल गया है.
हाल ही में उनकी बहन उज्म की जेल में खान से मिलने और उसके बाद पूर्व क्रिकेटर की हालत की डिटेल्स के कारण परिवार और उनके समर्थकों के बीच प्रशासन के साथ संघर्ष बढ़ गया, खासकर पाकिस्तान आर्मी चीफ असीम मुनीर के खिलाफ.
यह देखना होगा कि क्या सरकार कोई औपचारिक जांच शुरू करेगी, जिससे कानूनी या संस्थागत जवाब देने के लिए मजबूर किया जा सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी—खासकर खैबर पख्तूनख्वा में—गुस्से और शिकायत को विरोध प्रदर्शनों, कानूनी पिटीशन या चुनावी लामबंदी के जरिए और बढ़ाएगी.
खैबर पख्तूनख्वा (केपी) इस हलचल का सेंटर बन गया है, क्योंकि यह पीटीआई का एक मजबूत राजनीतिक आधार है. राज्य के नेताओं ने मिलकर विरोध प्रदर्शनों, कानूनी याचिकाओं और पब्लिक मैसेजिंग से इमरान खान की हालत को सुर्खियों में बनाए रखा है.
केपी ने फेडरल अधिकारियों को सुरक्षा और राजनीतिक दबाव दोनों का जवाब देने के लिए मजबूर किया. राज्य सरकार के रवैये और सड़कों पर लामबंदी के पैमाने ने इस इलाके को संघीय प्रशासन के लिए एक रणनीतिक चुनौती बना दिया है, जिससे लोकल सरकार को भंग करने और सेंट्रल रूल लागू करने जैसे खास उपायों पर चर्चा शुरू हो गई है.
पूरे देश में अधिकारियों ने जमावड़े पर रोक लगाकर, खास शहरों में कर्फ्यू लगाकर, और खान को रखने वाली रावलपिंडी जेल के आसपास और इस्लामाबाद में उनके केस की सुनवाई कर रही कोर्ट में भारी सिक्योरिटी तैनात करके प्रतिक्रिया की.
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डीकेपी/